जैन धर्म का इतिहास?, जानिए संपूर्ण परिचय, जैन धर्म के पाँच मूलभूत सिद्धांत, जैन धर्म की उत्पत्ति कैसे हुई।

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जैन धर्म का विस्तार :- 

जैन धर्म

क्या है जैन धर्म?, जानिए संपूर्ण परिचय, जैन धर्म के पाँच मूलभूत सिद्धांत, जैन धर्म की उत्पत्ति कैसे हुई।
जैन धर्म

संस्थापकों :- ऋषवेद / आदिनाथ
21 वें गुरु → नेमिनाथ 
22 वें गुरु → अरिष्टनेमी (ये भगवान कृष्ण के समकालीन थे) 23 वें गुरु→ पार्श्वनाथ (ये पार्श्वनाथ एवं भगवान महावीर के इतिहासिक साक्ष्य मिलते हैं।

पार्श्वनाथ के पिता :- अश्वसेन
                                  ↓
                             काशी (बनारस) के राजा थे !
माता :-  वामा
पार्श्वनाथ को सम्मेद पर्वत (गुजरात ) में ज्ञान की प्राप्ति हुई !
पार्श्वनाथ ने 4  व्रत दिये थे
1.  सत्य
2. अहिंसा
3. अस्तेय  (चोरी नहीं करना )
4. अपरिग्रह (संचय नहीं करया)


पार्श्वनाथ ने अपने अनुयायियों को श्वेत वस्त्र धारण करने की अनुमति दी।

 24 वें गुरु                        भगवान महावीर 

महावीर को जैन धर्म का वास्तविक  संस्थापक  माना जाता है !

बचपन  का नाम :- वद्धमान
पिता  :- सिद्धार्थ
माता : - त्रिशला
भाई :- नंदीवर्धन
पत्नी :-  यशोदा
पुत्री :- प्रियदर्शना
दामाद :-  जामालि
जन्म वर्ष  :- 540 BC
जन्म स्थल :- कुण्डग्राम
मृत्यु :- पावापुरी

वद्धमान ने 30 वर्ष की अवस्था में गाजे-बाजे के साथ घर त्याग कर दिया।
गृह त्याग के बाद 13  माहीने पश्चात् वद्धमान ने कपड़े त्याग कर दिया !

यह जानकारी भद्रबाहु के कल्पसुत्र से मिलती है!
42 वर्ष की ही अवस्था में जुम्बिकाग्राम में ऋजूपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के निचे वर्द्धमान को ज्ञान की प्राप्त हुई !
अतः वे  महावीर कहलाये।

जैन शब्द जिन शब्द से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ → विजेता

महावीर का प्रथम शिष्य जामाति था ।
महावीर के विरुद्ध सर्वप्रथम विद्रोह जामाति  ने किया
महावीर ने आरम्भ में 11 ब्राह्मणों को शिक्षा दी थी।  जित्त गणधर कहा  गया।
महावीर की मृत्यु के समय केवल एक गणधर सुधर्मन जीवित था जिन्होंने जैन धर्म का नेतृत्व किया।
महावीर ने ब्रह्मचर्य व्रत जोड़ा !
                       
                   पांचवां व्रत 
क्या है जैन धर्म?, जानिए संपूर्ण परिचय, जैन धर्म के पाँच मूलभूत सिद्धांत, जैन धर्म की उत्पत्ति कैसे हुई।
भगवान बुद्घ

जैन धर्म की शिक्षाएँ :-

ज्ञान के 5 प्रकार
1. मति :- इन्द्रिय जनित ज्ञान
2. श्रुति :- सुनकर होने  वाला ज्ञान
3. अवधि :-  दूर-स्थान का ज्ञान (समय से परेज्ञान)
मन:पर्यय :- मन की बात पढ़ लेना
कैवल्य :- यह ज्ञान केवल तीर्थंकरों को होता है।
                                या
                                गुरु
2. त्रिरत्न :- सम्यक ज्ञान
                  सम्यक दर्शन
                  सम्यक चरित्र (आचरण )
3. अनेकांतवाद :- यह जैन धर्म का तत्व मिसांसिय सिद्धांत है !इसके तहत इस जगत में अनेक वस्तुएं हैं ,प्रत्येक वस्तु में अनेक गुण  है इनमेंसे कुछ गुण नित्य एवं कुछगुण  परिवर्तन शील होते हैं !
गुण :- 

  1. नित्य 
  2. परिवर्तनशील                                                                

 स्यादवाद :- यह जैन दर्शक ज्ञानमीमांसिया सिद्धांत  है।  इसके तहत इस जगत में अनेक वस्तुएं हैं !
प्रत्यक  वस्तु में अनेक  गुण हैं लेकिन हमारी बुद्धि सीमित होती है जो ना तो उस जगत सभी वस्तुओं को जान सकती है और ना ही वस्तुएं के सभी गुगों को जान सकती है।
यह ज्ञान की सापेक्षता का सिद्धान्त है।
अति हमारा ज्ञान देश, काल और परिस्थिति के सापेक्ष  होता है।  जैन दर्शन में इसे सात जन्मान्द्य और  एक हाथी के माध्यम से समझाया गया है।
5. व्रत 
                                व्रत
           अणुव्रत                                  महाव्रत

पाँचौ व्रतों का स्तर पर पालन             पाँचौ व्रतों का पूर्णतिया
करना (गृहस्थ के लिए)                    पालन किया (साधुयें                                                                   के लिए)      


जीव :- जैन दर्शन में चेतन तत्व या आत्मा को जीव कहा गया है । 
पृदगल :- जैन दर्शन में जड़ तत्वो प्रगल कटा है है।  
बन्धन :- अब पृदगल जीव से चिपक जाते हैं तब जीव बन्धन में पड़ जाता है।  
आस्रव : - पृदगलों का जीव की तरफ होने वाला प्रवाह, आस्रव कहलाता है। 
संवर :-पृदगलों का जीव की तरफ होने वाले प्रवाह रुक जाना, संवर कहलाता है।  
निर्जरा :- प्रदगलों का जीव से झड़ना (पृठक होना), निर्जरा कहलाता है।  
मुक्ति :- अब अंतरिम पृदगलों जीव से झङ जाता हैं । 
तब जीव को मुक्ति मिल जाती है। एवं जीव अनंत चतुष्टय  की  अवस्था में चला जाता है। 
   
क्या है जैन धर्म?, जानिए संपूर्ण परिचय, जैन धर्म के पाँच मूलभूत सिद्धांत, जैन धर्म की उत्पत्ति कैसे हुई।
जैन धर्म
अनंत चतुष्टय :-      
अनंत ज्ञान 
अनंत दर्शन
 अनंत वीर्य
अनंत आनंद
Note :- 
जैन दर्शन के अनुसार प्रत्येक वस्तु में आत्मा होती है।
एक वस्तु में एक से अधिक आत्माये भी हो सकती है।  

जैन संगीतियाँ :-
समय :- 298BC 
शासक :- चन्द्रगुप्त मौर्य 
स्थान :- पाटलिपुत्र 
अध्यक्ष :- स्थूलभद्र 
उपाध्यस :- भद्रबाहु 

जैन धर्म 2 शारखानों में विभस्त हो गया है।  
1. भद्रबाहु के अनुयायी 
2. स्थूलभद्र के अनुयायी

दूसरा संगीति :-
समय :- 512AD
स्थान :- वल्लभी (गुजरात) 
अध्यक्ष :- देवार्धि क्षमा क्षम्रण 

जैन साहित्य को लिपि बद्घ लिखा गया जिसे आगम साहित्य कहा जाता है ।

जैन दर्शन का योगदान :- 
1. भगवान महावीर ने एक सरल और आडंबर विहीन धर्म दिया।
2. भगवान महावीर ने समाजिक समानता पर विशेष बल दिया। 
3. महावीर ने कर्म काण्ड, पुर्नजन्म आदि की सरल व्याख्या की। 
 4. भारतीय स्थापत्य कला के विकास में एक धर्म  का विशेष स्थान है। 
 Ex :- देलवाड़ा जैन मन्दिर, रणकपूर जैन मन्दिर 
5. भारतीय चित्रकला का भी विकास हुआ 
Ex :- ऐलोरा बाघ की गुफाएँ

6. भारतीय मूर्तिकला में तीर्थरों की मूर्तियों का निर्माण हुआ।  7. शिक्षा के केंद्र का विकास हुआ।  इन्हे 'उपासरा' कहते हैं।  8. महावीर में अहिंसा पर विशेष बल दिया ओ भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में गांधीजी का प्रमुख हथियार बना।  
9. महावीर ने नैतिक और समाजिक शिक्षाओं पर विशेष बल दिया।  जिससे समाज में सुधार हुआ।


WRITTEN BY NDK EDUCATUION

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