संगम काल - हेल्लो गाइज हमारी वेबसाइट Ndk education में आप सभी लोगों का स्वागत है, आज की आर्टिकल में हम संगम काल क्या है! इसके बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे !
संगम का सर्वधिक् अर्थ - संघ या परिषद्
तमिल साहित्य की रचना हेतु संगम का आयोजन किया गया !
संगम काल 1st से 3rd शताब्दी रामभरण शर्मा के अनुसार -3rd से 6th सताब्दी
पाण्ड्य शासकों ने संगमों का आयोजन किया !
संगमकालीन तमिल साहित्य में चेर ,पाण्ड्य ,चोल वंश की जानकारी मिलती है !
प्रथम संगम :-
स्थान - मदुरयै
संरक्षक - पाण्ड्य वंश
अध्यक्ष - आगस्तय ऋषि
वैदिक परंपरा को दक्षिण में ले जाने का श्रेय आगस्तय ऋषि एवं कौण्डिन्य नामक ब्राह्मण को जाता है !
इस संगम की एक भी पुस्तक प्राप्त नहीं होती है !
दूसरा संगम :-
स्थान - कपाटपूरम
संरक्षक - पाण्ड्य वंश
अध्यक्ष - 1. आगस्तय ऋषि
2. तोलक्कापियर पुस्तक - तोलक्कापियम - विषय - तमिल व्याकरण
तीसरा संगम :-
स्थान - उत्तरी मदुरै
संरक्षक - पांडेय
अध्यक्ष - नक्कीरर
प्रमुख पुस्तके :-
1. ऎतुतोके (8 गीतों का संग्रह है !)
2 . पतुपातु (गीतों का संग्रह है !)
लेखक पुस्तक
इलंगो आदिगाल शिल्पादीकारम
यह एक महिला प्रधान पुस्तक !
इसमें कग्गनी एवं उसके पति कोवलन की कहानी है !
शिल्पादीकारम का शाब्दिक अर्थ नूपुर की कहानी
सीतलेसतनार मणिमेखले
तिरुनक देवर जीवकचिंतामणि
यह जैन भिक्षुक था इसमें जीवन नामक व्यक्ति की कहानी है जिसने 8 विवाह किये ! तथा अन्तः में साधु बन गया ! इसलिए इसे विवाह ग्रन्थ कहा जाता है !
तिरुवल्लुवर कुरुल
चोल वंश :-
ऐतरेय ब्राह्मण के चेर वंश का उल्लेखन मिलता है !
अशोक के अभिलेखों में इनका उल्लेख मिलता है !
तमिल साहित्य में सर्वधिक उल्लेख चेरों का मिलता है !
चेरों की राजधानी :- वांजी
प्रतीक :- धनुष
प्रमुख्य शासक :- उदीपन जेरल
इसने विशाल प्रकृशाला (भोजनालय) का निर्माण करवाया !
इसने महाभारत के युद्धाओं को भोज पर आमंत्रित किया !
नेदून जेरल :-
इसने एवं व्यपारियों को बंदी बनाया एवं उन्हें मुक्त करने के बदले में बड़ी धनराशि वसूल की !
शेन गट्टूवन :-
चेर वंश का सबसे महत्वपर्ण शासक !
यह अच्छा चेर या लाल चेर के नाम से प्रसिद्ध था !
चोल वंश :-
पाणिनी के के अष्टाध्यायी में इनका उल्लेख मिलता है !
राजधानी :- उरैयूर
प्रतीक :- बाघ
करिकाल :-
संगम काल का एवं चोल वंश का सबसे महत्वपूर्ण शासक
शाब्दिक अर्थ :- जले दुरै पैरों वाला
पाण्ड्य वंश :-
पाणिनी के के अष्टाध्यायी में उल्लेख मिलता है !
मैगस्थनीज की इंडिका में पाण्ड्य का उल्लेख मिलता है !
मैगस्थनीज ने इसे माबर देश कहा है !
माबारदेश मूर्तियों का व्यापर हेतु प्रसिद्ध है !
मैगस्थनीज के अनुसार माबारदेश में हेराक्ट की पुत्री का शासन है !
राजधानी :- मदुरै
प्रतीक :- कार्प (मछली)
पांडेय शासकों ने विदेशी व्यापर एवं व्यापर पर अत्यधिक बल दिया !
नोट :-
संगम काल में रूमन साम्राज्य के साथ व्यापर होता था !
अरिकामेडु से बड़ी मात्रा में रूमन साम्राज्य में सिक्के प्राप्त होते हैं !
चालुक्य - पल्ल्वव संघर्ष
चालुक्य
वातापी/बादामी कल्याण वेंगी
(पश्चिमी चालुक्य) (पश्चिमी चालुक्य) (पूर्वी चालुक्य)
संस्थापाक :- जयसिंह
राजधानी :- वातापी
पुलकेशिन -1
मंगलेश :-
इसमें बादामी की गुफाओं का निर्माण करवाया है !
बादामी में हिन्दू मंदिर का निर्माण करवाया था !
इसके भतीजे पुलकेशिन - 2 ने इसकी हत्या कर दी!
पुलकेशिन - 2
इस वंश का सबसे महान शासक
इसने पल्लव शासक महेन्द्रवर्मन को पराजित किया , एवं पल्लव साम्राज्य के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया !
अपने भाई विष्णुवर्धन को वहां का शासक नियुक्त किया !
यही चालुक्यों की वेंगी शाखा है !
इसने हर्षवर्धन को पराजित किया ! एवं परमेश्वर की उपाधि धारण की !
यह जानकारी रविकीर्ति द्वारा लिखित ऐहोल के अभिलेख से मिलती है !
ऐहोल के अभिलेख में महाभरत युद्ध का भी वर्णन मिलता है !
इस अभिलेख में रविकीर्ति सवयं की तुलना कालिदास एवं भारवी से करता है !
पुलकेशिन - 2 ने अपना एक दूत मंडल फारस के पास भेजा था
पल्लव शासक नरसिंह -1 ने पुलकेशिन - 2 को दो बार पराजित किया !
कीर्तिवर्मन :-
अंतिम शासक
दन्तिदुर्ग ने इसे पराजित कर राष्ट्रकूट वंश की स्थापना की !
पल्लव वंश
अधिक जानकारी के लिए यह भी पढ़ें :-
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संगम काल |
संगम का सर्वधिक् अर्थ - संघ या परिषद्
तमिल साहित्य की रचना हेतु संगम का आयोजन किया गया !
संगम काल 1st से 3rd शताब्दी रामभरण शर्मा के अनुसार -3rd से 6th सताब्दी
पाण्ड्य शासकों ने संगमों का आयोजन किया !
संगमकालीन तमिल साहित्य में चेर ,पाण्ड्य ,चोल वंश की जानकारी मिलती है !
प्रथम संगम :-
स्थान - मदुरयै
संरक्षक - पाण्ड्य वंश
अध्यक्ष - आगस्तय ऋषि
वैदिक परंपरा को दक्षिण में ले जाने का श्रेय आगस्तय ऋषि एवं कौण्डिन्य नामक ब्राह्मण को जाता है !
इस संगम की एक भी पुस्तक प्राप्त नहीं होती है !
दूसरा संगम :-
स्थान - कपाटपूरम
संरक्षक - पाण्ड्य वंश
अध्यक्ष - 1. आगस्तय ऋषि
2. तोलक्कापियर पुस्तक - तोलक्कापियम - विषय - तमिल व्याकरण
तीसरा संगम :-
स्थान - उत्तरी मदुरै
संरक्षक - पांडेय
अध्यक्ष - नक्कीरर
प्रमुख पुस्तके :-
1. ऎतुतोके (8 गीतों का संग्रह है !)
2 . पतुपातु (गीतों का संग्रह है !)
लेखक पुस्तक
इलंगो आदिगाल शिल्पादीकारम
यह एक महिला प्रधान पुस्तक !
इसमें कग्गनी एवं उसके पति कोवलन की कहानी है !
शिल्पादीकारम का शाब्दिक अर्थ नूपुर की कहानी
सीतलेसतनार मणिमेखले
तिरुनक देवर जीवकचिंतामणि
यह जैन भिक्षुक था इसमें जीवन नामक व्यक्ति की कहानी है जिसने 8 विवाह किये ! तथा अन्तः में साधु बन गया ! इसलिए इसे विवाह ग्रन्थ कहा जाता है !
तिरुवल्लुवर कुरुल
चोल वंश :-
ऐतरेय ब्राह्मण के चेर वंश का उल्लेखन मिलता है !
अशोक के अभिलेखों में इनका उल्लेख मिलता है !
तमिल साहित्य में सर्वधिक उल्लेख चेरों का मिलता है !
चेरों की राजधानी :- वांजी
प्रतीक :- धनुष
प्रमुख्य शासक :- उदीपन जेरल
इसने विशाल प्रकृशाला (भोजनालय) का निर्माण करवाया !
इसने महाभारत के युद्धाओं को भोज पर आमंत्रित किया !
नेदून जेरल :-
इसने एवं व्यपारियों को बंदी बनाया एवं उन्हें मुक्त करने के बदले में बड़ी धनराशि वसूल की !
शेन गट्टूवन :-
चेर वंश का सबसे महत्वपर्ण शासक !
यह अच्छा चेर या लाल चेर के नाम से प्रसिद्ध था !
चोल वंश :-
पाणिनी के के अष्टाध्यायी में इनका उल्लेख मिलता है !
राजधानी :- उरैयूर
प्रतीक :- बाघ
संगम काल |
करिकाल :-
संगम काल का एवं चोल वंश का सबसे महत्वपूर्ण शासक
शाब्दिक अर्थ :- जले दुरै पैरों वाला
पाण्ड्य वंश :-
पाणिनी के के अष्टाध्यायी में उल्लेख मिलता है !
मैगस्थनीज की इंडिका में पाण्ड्य का उल्लेख मिलता है !
मैगस्थनीज ने इसे माबर देश कहा है !
माबारदेश मूर्तियों का व्यापर हेतु प्रसिद्ध है !
मैगस्थनीज के अनुसार माबारदेश में हेराक्ट की पुत्री का शासन है !
राजधानी :- मदुरै
प्रतीक :- कार्प (मछली)
पांडेय शासकों ने विदेशी व्यापर एवं व्यापर पर अत्यधिक बल दिया !
नोट :-
संगम काल में रूमन साम्राज्य के साथ व्यापर होता था !
अरिकामेडु से बड़ी मात्रा में रूमन साम्राज्य में सिक्के प्राप्त होते हैं !
चालुक्य - पल्ल्वव संघर्ष
चालुक्य
वातापी/बादामी कल्याण वेंगी
(पश्चिमी चालुक्य) (पश्चिमी चालुक्य) (पूर्वी चालुक्य)
संस्थापाक :- जयसिंह
राजधानी :- वातापी
पुलकेशिन -1
मंगलेश :-
इसमें बादामी की गुफाओं का निर्माण करवाया है !
बादामी में हिन्दू मंदिर का निर्माण करवाया था !
इसके भतीजे पुलकेशिन - 2 ने इसकी हत्या कर दी!
संगम काल |
इस वंश का सबसे महान शासक
इसने पल्लव शासक महेन्द्रवर्मन को पराजित किया , एवं पल्लव साम्राज्य के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया !
अपने भाई विष्णुवर्धन को वहां का शासक नियुक्त किया !
यही चालुक्यों की वेंगी शाखा है !
इसने हर्षवर्धन को पराजित किया ! एवं परमेश्वर की उपाधि धारण की !
यह जानकारी रविकीर्ति द्वारा लिखित ऐहोल के अभिलेख से मिलती है !
ऐहोल के अभिलेख में महाभरत युद्ध का भी वर्णन मिलता है !
इस अभिलेख में रविकीर्ति सवयं की तुलना कालिदास एवं भारवी से करता है !
पुलकेशिन - 2 ने अपना एक दूत मंडल फारस के पास भेजा था
पल्लव शासक नरसिंह -1 ने पुलकेशिन - 2 को दो बार पराजित किया !
कीर्तिवर्मन :-
अंतिम शासक
दन्तिदुर्ग ने इसे पराजित कर राष्ट्रकूट वंश की स्थापना की !
पल्लव वंश
अधिक जानकारी के लिए यह भी पढ़ें :-
गाइज हमने संगम काल बारे में जो भी जानकारी दिया हूँ ! यह इनफार्मेशन आप लोगों के साथ शेयर किया हूँ! अगर यह आर्टिकल आपको अच्छा लगे, तो इसे आप सोशल मिडिया और अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करें! ताकि उसे भी संगम काल के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकें! यह आर्टिकल आपको कैसा लगा आप कॉमेंट जरूर करें, इस आर्टिकल से सम्बंधित कोई भी सवाल (प्रश्न) है, तो आप कॉमेंट में पूछ सकते हैं, या इससे सम्बंधित कोइ सुझाव है, तो आप हमें कॉमेंट या मेल कर सकते हैं !
WRITTEN BY NDK EDUCATUION
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